
वसंत पंचमी पूरे भारत में हिंदुओं और सिखों द्वारा मनाया जाने वाला एक रंगीन और खुशी का त्योहार है। इसे हिंदी में बसंत पंचमी भी कहा जाता है। ‘वसंत’ शब्द का अर्थ है वसंत और ‘पंचमी’ का तात्पर्य पांचवें दिन से है, इसलिए, जैसा कि नाम है, यह त्योहार वसंत के मौसम के पांचवें दिन मनाया जाता है।इस दिन विद्या और कला की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती की पूजा का विधान है|
हिंदू कैलेंडर और भारतीय कैलेंडर के अनुसार, माघ माह में शुक्ल पक्ष के 5वें दिन बसंत पंचमी मनाई जाएगी।इस साल बसंत पंचमी 26 जनवरी 2023, बृहस्पतिवार के दिन मनाई जाएगी.
सृष्टि रचना के दौरान भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, वों खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की| ब्रह्माजी अपने सृजन से संतुष्ट नहीं थे| उन्हें लगा कि कुछ कमी है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया है | विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल का छिड़काव किया |पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही कंपन होने लगे| इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भु त शक्ति प्रकट हुई | यह शक्ति एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री थी | जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरे हाथ में वर मुद्रा था. अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी| ब्रह्माजी ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया| जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हुई| जलधारा में कोलाहल व्याप्त हुआ| पवन चलने से सरसराहट होने लगी| तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा. सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है|
यह भी माना जाता है कि पीला सरस्वती मां का पसंदीदा रंग है, इसलिए लोग इस दिन पीले कपड़े पहनते हैं और पीले व्यंजन और मिठाइयां तैयार करते हैं। वसंत पंचमी पर देश के कई हिस्सों में केसर के साथ पके हुए पीले चावल पारंपरिक दावत होती है। वसंत पंचमी के दिन, हिंदू लोग मां सरस्वती चालीसा पढ़ते हैं ताकि उनका भविष्य अच्छा हो सके।
बसंत पंचमी का पौराणिक महत्त्व रामायण काल से जुड़ा हुआ है| जब मां सीता को रावण हर कर लंका ले गया तो भगवान श्री राम उन्हें खोजते हुए जिन स्थानों पर गए थे, उनमें दंडकारण्य भी था| यहीं शबरी नामक भीलनी रहती थी| जब राम उसकी कुटिया में पधारे, तो वह सुध बुध खो बैठी और प्रेम वश चख चखकर मीठे बेर राम जी को खिलाने लगी| कहते हैं कि गुजरात के डांग जिले में वह स्थान आज भी है, जहां शबरी मां का आश्रम था | बसंत पंचमी के दिन ही प्रभु रामचंद्र वहां पधारे थे. इसलिए बसन्त पंचमी का महत्व बढ़ गया|