चमत्कारिक अद्भुत भूल भुलैया वाला मंदिर है विरुपाक्ष महादेव मंदिर
देश विदेश से भक्त आते हैं आराधना करने
(www.csnn24.com)मध्य प्रदेश के रतलाम में देश ही नहीं दुनिया का सबसे अनोखा शिव मंदिर है, जिस भूल भुलैय्या वाले शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है। प्राचीन शिव मंदिरों के बारे में तो आपने कई किवदंतियां सुनी होंगी लेकिन रतलाम के बिलपांक गांव में एक शिव मंदिर ऐसा भी है जिसे भूल भुलैय्या वाला शिव मंदिर कहा जाता है। जी हां इसका नाम है विरूपाक्ष महादेव मंदिर। इस मंदिर की स्थापना मध्ययुग से पहले, परमार राजाओं ने की थी और भगवान भोले नाथ के ग्यारह रुद्र अवतारों में से पांचवें रूद्र अवतार के नाम पर, इस मंदिर का नाम विरूपाक्ष महादेव मंदिर रखा गया। इस मंदिर के चारों कोनों में चार मंडप भी बनाये गए हैं जिसमें भगवान गणेश, मां पार्वती और भगवान सूर्य की प्रतिमा को स्थापित किया गया है।
मंदिर को भूल भुलैय्या वाला शिव मंदिर भी कहा जाता है क्योंकि इस मंदिर में लगे खंभों की एक बार में सही गिनती करना किसी के बस की बात नहीं है। इस मंदिर के सभी 64 खंभों पर की गई नक्काशी देखने योग्य है। इस प्राचीन विरूपाक्ष महादेव मंदिर के अंदर 34 खंभों का एक मंडप है और सभी चारों कोनों पर, खंभों की गिनती 14-14 बनती है जबकि 8 खंभे अंदर गर्भगृह में हैं। ऐसे में एक बार में इन खंभों की सही गिनती करना मुश्किल है। जिसके चलते लोग इस मंदिर को भूल भुलैय्या वाला शिव मंदिर भी कहते हैं। इस मंदिर के इतिहास की बात करें तो यह मंदिर गुर्जर चालुक्य शैली परमार कला के समकालीन का अप्रतिम उदाहरण है।
यहां के स्तंभ व शिल्प सौंदर्य इस काल के चरमोत्कर्ष को दर्शाते हैं वर्तमान में मंदिर में गुजरात के चालुक्य वंश के के नरेश सिद्धराज जयसिंह का संवत 1196 का शिलालेख गर्भ ग्रह में हुआ है जिस से ज्ञात होता है कि महाराजा सिद्धराज जयसिंह ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था इस मंदिर की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि है मंदिर में प्रवेश के समय सभामंडप में दाहिने भाग पर शुभ कुषाण कालीन एक स्तंभ जो यह दर्शाता है कि इस काल में भी यहां या मंदिरा होगा इस मंदिर में शिल्प कला के रूप में चामुंडा हरिहर विष्णु शिव गणपति पार्वती आदि की भी प्रतिमाएं प्राप्त होती है ।
गर्भ ग्रह के प्रवेश द्वार पर गंगा यमुना द्वारपाल तथा अन्य अलंकरण गर्भ गृह के मध्य में शिवलिंग एक तोरण द्वार भी लगा हुआ है जो गुर्जर चालू की शैली काय शिवलिंग की जलाधारी पर उत्कीर्ण लेख से विदित होता है कि या जलाधारी सन 18 सो 86 में स्थापित की गई है मंदिर के समीप धातु का एक विशाल घंटा है जिस पर संवत 1941 उत्कीर्ण है सिद्धराज जय सिंह के द्वारा निर्मित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि उसने भक्ति पूर्वक ऐसे सीकर वाला प्रसाद बनवाया जिसमें आकाश से चलने वाली सुंदर या कीड़ा करती हुई कभी कभी आ जाया करती थीl
यहां शिवरात्रि होती है अलग
महाशिवरात्रि के मौके पर हर साल यहां मेला लगता है और भगवान विरूपाक्ष के दर्शन के लिए श्रद्धालु दूर दूर से यहां पहुंचते हैं। मान्यता है कि बाबा भोले नाथ के दर से कोई भी भक्त खाली हाथ नहीं जाता। खास बात यह है कि इस मंदिर में आयोजित हवन के बाद बंटने वाले खीर के प्रसाद से, माँओं की सूनी गोद भी भरती है जिसके लिए दूर दूर से, बड़ी संख्या में महिलाएं विरूपाक्ष महादेव के दर्शन के लिए आती हैं। बीते 64 सालों से हर साल यहां इस महायज्ञ का आयोजन किया जा रहा है जिसमें खीर की प्रसादी के लिए लोग प्रदेश और देश के कोने कोने से आते हैं। गोद भरने पर यहां बच्चों को मिठाईयों से भी तौला जाता है।
नि:संतान दंपति प्रसाद लेने आते हैं यहां
प्रशासन ने रतलाम के समीर बिलपांक का विरूपाक्ष मंदिर भी संरक्षित घोषित किया हुआ है। स्थापत्य कला की दृष्टि से ऊन व उदयेश्वर के शिव मंदिर व इसमें काफी साम्यता है। यहां 5.20 वर्गमीटर के गर्भगृह में पीतल की चद्दर से आच्छादित 4.14 मीटर परिधि वाली जलाधारी व 90 सेमी ऊंचा शिवलिंग स्थापित है। 64 स्तंभ वाले सभागृह में एक स्तंभ मौर्यकालीन भी है। यहां 75 वर्षों से हर शिवरात्रि पर महारुद्र यज्ञ होता है जिसमें खीर का प्रसाद ग्रहण करने दूर-दूर से बड़ी संख्या में नि:संतान दंपति आते हैं।
इसलिए विशेष है यह मंदिर
मंदिर में 64 खंभे, गर्भगृह, सभा मंडप व चारों और चार सहायक मंदिर हैं। सभा मंडल में नृत्य करती हुईं अप्सराएं वाद्य यंत्रों के साथ हैं। मुख्य मंदिर के आसपास सहायक मंदिर भी मौजूद हैं। पूर्व सहायक मंदिर के उत्तर में हनुमानजी की ध्यानस्थ प्रतिमा, पूर्व दक्षिण में जलाधारी व शिव पिंड, पश्चिम के उत्तर में विष्णु भगवान गरुड़ पर विराजमान हैं। पश्चिम में दांयीं सूंड वाले गणेशजी की प्रतिमा है। मंदिर में शिवरात्रि पर लाखों लोग महादेव के दर्शन के लिए आते हैं।
पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित किया मंदिर अभी भी अपने भव्य स्वरूप एक बार पुनः दिखाई दे इसके लिए योजना तैयार की जा रही है महाकाल लोक की तर्ज पर इस मंदिर के सुंदरीकरण की भी योजना तो बना ली गई है परंतु अमलीजामा कब बनेगी यह भविष्य के गर्भ में छुपा हुआ है फिलहाल तो मंदिर अपने आसपास के अतिक्रमण और देखरेख के अभाव में अपनी भव्यता को खोता जा रहा है।