Publish Date: January 18, 2023
मंगल से अमंगल क्यों?
सामान्यतः मांगलिक का अर्थ मंगल करनेवाला ।
लेकिन ज्योतिष के सन्दर्भ में मांगलिक होने का अर्थ एक विशिष्ट योग से होता है ।
आज हम उस महत्वपूर्ण विषय पर प्रकाश डालने की कोशिश कर रहे हैं । सामान्यतः 100 में से 40 से ज्यादा जातकों की कुण्डली में यह योग होता है ।
लग्न, चौथे, सातवें, आठवें और बारहवें भाव में मंगल हो तो जन्म पत्रिका मांगलिक होती हैं जिन जातकों की पत्रिका में इन स्थान पर मंगल होता हैं उनके परिवार के प्रमुखों में जातक के विवाह को लेकर चिंता बनी रहती हैं की विवाह के योग्य जीवन साथी कब और कैसा मिलेगा ?
मंगल दोष 28 वे वर्ष में अपने आप समाप्त हो जाता है और बिना कुंडली मिलाए शादी करा देनी चाहिए, ये लोगों का भ्रम है।
न मंगली चन्द्र भृगु द्वितीये, न मंगली पश्यति यस्य जीवा
न मंगली केन्द्रगते च राहुः, न मंगली मंगल-राहु योगे ॥
यदि द्वितीय भाव में चन्द्र शुक्र का योग हो, या मंगल गुरु द्वारा दृष्ट हो, केन्द्र भावस्थ राहु हो, अथवा केन्द्र में राहु – मंगल का योग हो तो मंगल का परिहार हो जाता हैं
गुरु भौम समायुक्तश्च भौमश्च निशाकरः केन्द्रे वा वर्तते चन्द्र एतद्योग न मंगली ।
गुरु लग्ने त्रिकोणेवा लाभ स्थाने यदा शनिः, दशमे च यदा राहु एतद्योग न मंगली ।
गुरु भौम के साथ पडने से अथवा चन्द्रमा भौम एक साथ और केन्द्र मे ( 1, 4, 7,10) इन स्थानो मे चन्द्रमा होवे तो भी मंगली दोष मिट जाता है, जिसके लग्न मे गुरु बैठा हो अथवा त्रिकोण स्थान (5,9) मे गुरु बैठा और 11 भाव शनि हो 10 वे स्थान राहु बैठा हो तो मंगल का परिहार हो जाता हैं।
शुभ ग्रहों का केंद्र में होना, शुक्र द्वितीय भाव में हो, गुरु मंगल साथ हों या मंगल पर गुरु की दृष्टि हो तो मंगल का परिहार हो जाता हैं।
मेष का मंगल लग्न में, धनु का द्वादश भाव में, वृश्चिक का चौथे भाव में, वृष का सप्तम में, कुंभ का आठवें भाव में हो तो मंगल का परिहार हो जाता हैं ।
पंडित जय किरण शर्मा (गुरूजी )
स्वर्ण पदक प्राप्त ज्योतिष एवं वास्तुविद
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