जब तक हिन्दी भाषा को पुर्ण रुप से सम्मान नहीं मिलेगा। तब तक चैन से नहीं बैठुगां…डाक्टर मनोहर भंडारी

(www.csnn24.com)रतलाम/सैलाना. शासकीय मेडिकल कॉलेज इंदौर के सेवानिवृत्त सह प्राध्यापक डॉ मनोहर भंडारी का मत है कि देश के सभी प्रांतों में प्रांतीय व स्थानीय भाषा में भी मेडिकल की पढ़ाई कराई जाने की जरूरत है। इसके लिए वे जो भी लड़ाई जायज होगी, अवश्य लड़ेंगे। प्रदेश में तो मेडिकल की पढ़ाई में उनके संघर्ष के पश्चात सरकारों ने हिंदी के उपयोग की बहुतायत इजाजत दी है। पर अब उनका संघर्ष देश के अन्य प्रांतों में भी स्थानीय भाषाओं में मेडिकल के अध्यापन की ओर रहेगा।
मूलतः सैलाना निवासी डाक्टर भंडारी अपने अल्प प्रवास पर मंगलवार को सैलाना आए थे। सैलाना में पत्रकारों से चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि 1975 में उन्हें एमबीबीएस में प्रवेश मिला था। शुरुआती दौर से ही वे हिंदी भाषा के पक्षधर रहे हैं। एक सवाल के जवाब में डॉक्टर भंडारी का कहना है की दरअसल 1968 में जब अंग्रेजी हटाओ आंदोलन चला था। तब वे मात्र 13 साल के थे। तब से ही उन्हें अपने मन में हिंदी भाषा के लिए कुछ करने की ललक जागृत हुई थी। मेडिकल में प्रवेश के पश्चात जब उन्हें लगा कि वास्तव में औसत बुद्धि या उससे प्रतिभाशाली बच्चों के लिए एकाएक अंग्रेजी को कवर करना काफी मुश्किल लगता है। तो उनके मन में यह आया कि क्यों ना मेडिकल क्षेत्र में भी हिंदी भाषा का उपयोग हो?
शोधग्रंथ उन्होंने हिंदी में लिखें-
डॉक्टर भंडारी जब एम.डी के लिए शोधग्रंथ लिखने लगे, तो उन पर दबाव आया कि यह अंग्रेजी में ही लिखी जानी चाहिए। तब 28 अप्रैल 1991 को उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा को ज्ञापन सौंपा व मेडिकल के लिए हिंदी में ही शोधग्रंथ लिखने की अनुमति देने की मांग की। उस समय डॉक्टर भंडारी हिंदी प्रतिष्ठापन मंच के प्रांतीय संयोजक थे।
अंततः प्रशासन को उनकी बात माननी पड़ी-
बकौल भंडारी जब राजनीतिज्ञों से प्रयास करने के बाद भी कुछ हासिल नहीं हुआ, तो वे कानून की शरण में गए। एक हिंदी प्रेमी न्यायधीश से परामर्श के पश्चात उन्होंने संबंधित मेडिकल कॉलेज को नोटिस भेजा और कहा कि हिंदी में ही उन्हें शोधग्रंथ क्यों ना लिखने दी जाए? ये उनका संवैधानिक अधिकार है और राजभाषा में पढ़ाई कोई अपराध नहीं है। अंततः संबंधित मेडिकल कॉलेज ने झुककर यह बात मान ली और प्रदेश के इतिहास में डॉक्टर भंडारी ने पहली बार हिंदी में शोधग्रंथ लिखा व एम.डी की डिग्री नवंबर 1992 में हासिल की।
दूसरे राज्यों में भी सुगबुगाहट शुरू हुई-
डॉक्टर भंडारी का कहना है की मध्य प्रदेश में जब मेडिकल की पढ़ाई में हिंदी भाषा के उपयोग करने की कुछ हद तक इजाजत मिली तो दूसरे प्रांतों में भी इस बात की सुगबुगाहट हुई कि क्यों ना उन प्रांतों में भी प्रांतीय स्थानीय भाषा में मेडिकल की पढ़ाई कराई जाए? अन्य प्रांतों के कई विद्वानों ने उनसे संपर्क कर यह अभियान छेड़ा है।
बच्चों में जन्मजात भाषाई गुण होता है-
डॉक्टर भंडारी एक प्रश्न के उत्तर में कहते हैं कि प्रसिद्ध इतिहास कार, भाषाविद व वैज्ञानिक कहते हैं कि एक बच्चों में जन्मजात भाषाई गुण होता है। ऐसी भाषा को वे काफी जल्दी ग्रहण करते हैं, जहां उन्होंने जन्म लिया और जो जन्म से उपयोग में लाई जाती है। डाक्टर भंडारी का कहना है कि पूर्व राष्ट्रपति डॉ अब्दुल कलाम आजाद ने भी 11 जनवरी 2011 को नागपुर के एक महाविद्यालय में विज्ञान तथा गणित की पढ़ाई स्थानीय भाषा में की जाने की वकालत की थी। पद्मश्री डॉ अशोक पगड़िया भी एक से अधिक बार स्थानीय भाषाओं में मेडिकल की पढ़ाई कराई जाने की वकालत कर चुके हैं। ऐसा होने से औसत विद्यार्थी भी मेडिकल की पढ़ाई कर पाएंगे।
मोदी से उन्हें बहुत आशा है-
एक प्रश्न के उत्तर में डॉक्टर भंडारी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हिंदी भाषा के विकास के लिए उन्हें बहुत आशाएं हैं। जब-जब भी उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय में हिंदी भाषा के उपयोग की वकालत के लिए पत्र लिखे, तब- तब प्रधानमंत्री कार्यालय ने संबंधित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को ऐसा करने के लिए कहा। इसके लिए चिकित्सा शिक्षा कमेटी भी मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री ने बनाई है। कमेटी में वे खुद भी है। एक पुस्तक का विमोचन भी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने किया है। इस विमोचन समारोह में 50 हजार मेडिकल विद्यार्थी शामिल हुए थे। जिन्हें हिंदी भाषा में चिकित्सा शिक्षा के प्रस्ताव पर संबोधित किया गया था। डॉक्टर भंडारी को अब लगता है कि केंद्र व प्रदेश सरकार वाकई हिंदी भाषा के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए कटिबद्ध है और आने वाले समय में हो सकता है मेडिकल के साथ ही अन्य विषयों की पढ़ाई में भी हिंदी भाषा का बहुतायत उपयोग हो। परंतु जब तक ऐसा संपूर्ण रूप से नहीं हो जाता तब तक वे हिंदी भाषा के बहुतायत उपयोग के लिए संघर्ष करते रहेंगे। उन्होंने एक प्रश्न के उत्तर में यह भी कहा कि वे 32 सालों से हिंदी के लिए साधना करते रहे है और हर बार उन्हें अंग्रेजी प्रेमी भारतीयों से ही लोहा लेना पड़ता है। उनका संघर्ष तब तक जारी रहेगा। जब तक संपूर्ण हिंदी भाषा को हर जगह सम्मान ना मिले।