कब मनाई जाती है शीतला सप्तमी
चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी अष्टमी को शीतला माता का पर्व मनाया जाता है। इसे बसौड़ या बसौरा भी कहते हैं। शीतला सप्तमी को भोजन बनाकर रखा जाता है और दूसरे दिन उसी भोजन को ही खाया जाता है। इस दौरान विशेष प्रकार का भोजन बनाया जाता है। कहते हैं कि इस देवी की पूजा से चेचक का रोग ठीक होता है। आओ जानते हैं कि कौन है देक्ष शीतला माता।
ऐसा माना जाता है कि देवी शीतला अपने भक्तों और उनके परिवारों को खसरा और चिकनपॉक्स से बचाती हैं। इसलिए भक्त देवी शीतला का आशीर्वाद लेने के लिए शीतला सातम के अनुष्ठानों का पालन करते हैं। सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान, जिसका पालन शीतला सतम के दिन किया जाता है, वह यह है कि परिवार में कोई ताजा भोजन नहीं पकाया जाता है। शीतला सातम के दिन खाया जाने वाला भोजन ठंडा और बासी होना चाहिए। इसलिए अधिकांश परिवार पिछले दिन विशेष भोजन तैयार करते हैं जिसे रंधन छठ के नाम से जाना जाता है।
अनूठा है माता शीतला का रूप
स्कंद पुराण अनुसार देवी शीतला चेचक जैसे रोग की देवी हैं, यह हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण किए होती हैं तथा गर्दभ की सवारी पर अभय मुद्रा में विराजमान हैं। शीतला माता के संग ज्वरासुर ज्वर का दैत्य, हैजे की देवी, चौंसठ रोग, घेंटुकर्ण त्वचा रोग के देवता एवं रक्तवती देवी विराजमान होती हैं इनके कलश में दाल के दानों के रूप में विषाणु या शीतल स्वास्थ्यवर्धक एवं रोगाणुनाशक जल होता है।
पौराणिक कथा के अनुसार माता शीतला की उत्पत्ति भगवान ब्रह्मा से हुई थी। देवलोक से धरती पर माता शीतला अपने साथ भगवान शिक के पसीने से बने ज्वरासुर को अपना साथी मानकर लाईं थी। तब उनके हाथों में दाल के दाने भी थे। उस समय के राजा विराट ने माता शीतला को अपने राज्य में रहने के लिए स्थान नहीं दिया तो माता क्रोधित हो गई। उस क्रोध की ज्वाला से राजा की प्रजा को लाल लाल दाने निकल आए और लोग गर्मी के मारे मरने लगे। तब राजा विराट ने माता के क्रोध को शांत करने के लिए ठंडा दूध और कच्ची लस्सी उन पर चढ़ाई। तभी से हर साल शीला अष्टमी पर लोग मां का आशीर्वाद पाने के लिए ठंडा भोजन माता को चढ़ाने लगे।
शीतला माता की पूजा
शीतला सप्तमी के एक दिन पहले मीठा भात (ओलिया), खाजा, चूरमा, मगद, नमक पारे, शक्कर पारे, बेसन चक्की, पुए, पकौड़ी,राबड़ी, बाजरे की रोटी, पूड़ी, सब्जी आदि बना लें। कुल्हड़ में मोठ, बाजरा भिगो दें। इनमें से कुछ भी पूजा से पहले नहीं खाना चाहिए।
माता जी की पूजा के लिए ऐसी रोटी बनानी चाहिए जिनमे लाल रंग के सिकाई के निशान नहीं हों। इसी दिन यानि सप्तमी के एक दिन पहले छठ को रात को सारा भोजन बनाने के बाद रसोईघर की साफ सफाई करके पूजा करें। रोली, मौली, पुष्प, वस्त्र आदि अर्पित कर पूजा करें। इस पूजा के बाद चूल्हा नहीं जलाया जाता। बासोड़े के दिन सुबह जल्दी उठकर ठंडे पानी से नहाएं। एक थाली में कंडवारे भरें। कंडवारे में थोड़ा दही, राबड़ी, चावल (ओलिया), पुआ, पकौड़ी, नमक पारे, रोटी, शक्कर पारे,भीगा मोठ, बाजरा आदि जो भी बनाया हो रखें।
शीतला सप्तमी रंगों के त्योहार होली के सात दिन बाद मनाया जाता है | इस वर्ष यह निम्न तिथि के अनुसार मनाया जाएगा –
- शीतला सप्तमी – 14 मार्च, 2023
- शीतला सप्तमी पूजा मुहूर्त – 06ः 33 ए एम से 06ः 29 पी एम
- सप्तमी तिथि प्रारंभ – 13 मार्च 2023, 09:27 पी एम
- सप्तमी तिथि समाप्त – 14 मार्च 2023, 08:22 ए एम
- शीतला अष्टमी – 15 मार्च 2023