www.csnn24.com| इस साल दीपावली का पर्व 31 अक्तूबर को मनाया जाएगा। पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन गोवर्धन पूजा का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। इस दिन को दिवाली पड़वा भी कहा जाता है | दिवाली के अगले दिन प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा और अन्नकूट उत्सव मनाया जाता है। उत्तर भारत में इसका प्रचलन है लेकिन दक्षिण भारत में बलि और मार्गपाली पूजा का प्रचलन है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना करने से समस्त दुखों का अंत हो जाता है। पंचांग के अनुसार, इस साल कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि का आरंभ 1 नवंबर 2024 को शाम 6:16 बजे से हो रहा है, और इसका समापन अगले दिन 2 नवंबर को रात 8:21 बजे होगा। ऐसे में उदयातिथि के आधार पर गोवर्धन पूजा का पर्व 2 नवंबर 2024 को ही मनाया जाएगा।
दिवाली पड़वा से जुड़ी कुछ खास बातें
- दिवाली पड़वा को बाली प्रतिपदा के नाम से भी जाना जाता है|
- इस दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं, उत्सव के व्यंजन तैयार करते हैं, और दोस्तों और परिवार से मिलते हैं|
- भारत के कई हिस्सों में, इस दिन को नए साल के रूप में भी मनाया जाता है|
गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त
2 नवंबर 2024 को गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त प्रात: काल 6 बजे से लेकर 8 बजे तक है। इसके बाद दोपहर 03:23 बजे से लेकर 05:35 बजे के बीच भी गोवर्धन की पूजा की जा सकती है।
पूजा विधि
- गोवर्धन पूजा के दिन प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त होकर, गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत और श्री कृष्ण की मूर्ति बनाएं।
- इसके बाद मूर्ति को फूलों और रंग से सजाएं और गोवर्धन पर्वत और भगवान श्री कृष्ण की पूजा करें।
- इस दौरान भगवान को फल, जल, दीपक, धूप और उपहार अर्पित करें। साथ ही कढ़ी और अन्नकूट चावल का भोग लगाएं।
- इस दिन गाय, बैल और भगवान विश्वकर्मा की पूजा का भी विधान है। पूजा करने के बाद गोवर्धन पर्वत की सात बार परिक्रमा करें। इस दौरान जल हाथ में लेकर मंत्र का जाप करें।
- आखिर में आरती करके पूजा का समापन करें।
महत्व
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान इंद्र ब्रिजवासियों से क्रोधित हो गए, जिसके बाद भारी बारिश होने लगी। ब्रजवासियों कोभगवान इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली से उठा लिया और सभी ब्रजवासियों पर्वत के नीचे आकर संरक्षित हो गए। तभी से हर साल गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाने लगा। इसे भगवान श्रीकृष्ण के प्रति आभार व्यक्त करने का दिन माना जाता है।