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चैत्र मात्र के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि यानि 4 अप्रैल को दशा माता की पूजा अर्चना की जाएगी

घर की दशा सुधारने के लिए करें दशा माता की पूजा, जानें पूजा विधि, महत्व, शुभ मुहूर्त और पौराणिक कथा

Publish Date: April 3, 2024

(www.csnn24.com|) रतलाम हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को दशा माता का व्रत और पूजा अर्चना की जाती है| हिंदू धर्म परंपरा में दशा माता व्रत का विशेष महत्व है|  धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन दशा माता की पूजा अर्चना और व्रत करने से घर की दशा में सुधार आता है और दरिद्रता दूर होती है| इस दिन त्रिवेणी वृक्षों यानि की तीन वृक्षों पीपल, नीम, और बरगद की पूजा करने का विधान है|

शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार 4 अप्रैल को महिलाएं दशा माता की पूजा सुबह 6 बजकर 29 मिनट से 8 बजकर 2 मिनट तक और फिर 11 बजकर 8 मिनट से दोपहर 3 बजकर 46 मिनट तक कर सकती हैं.

दशा माता की पूजा विधि

इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि के बाद व्रत और पूजा का संकल्प लें और दशा व्रत के दिन पीपल के पेड़ को भगवान विष्णु का स्वरूप मानकर पूजा करें| इस दिन आपको कच्चे सूत में 10 गांठ लगाकर इसकी पूजा करनी चाहिए और पूजन के बाद इस डोरे को गले में बांधना जरूरी है| धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है|

इस दिन पीपल के पेड़ की परिक्रमा , पीपल के वृक्ष की 10 परिक्रमा करनी चाहिए करते हुए भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें| इसके बाद फिर वृक्ष के नीचे दीपक प्रज्वलित करें और अबीर गुलाल, कुमकुम, चावल आदि अर्पित करें|  इसके अलावा दशा माता के व्रत पर दिन में एक बार बिना नमक के भोजन करें और दशा माता के पूजन के बाद दशा माता की आरती जरूर करें|

जानें क्या है महत्व

दशा माता की पूजा अर्चना के बाद महिलाएं गले में साल भर तक डोरा बांधे रहती हैं,  मान्यता है कि इससे सभी परेशानियों से मुक्ति मिलती है और घर के सदस्यों की उन्नति होती है| वहीं अगर आप सालभर इसे धारण नहीं कर सकती हैं तो वैशाख के महीने के शुक्ल पक्ष में कोई भी अच्छा दिन देखकर इसे माता के चरणों में अर्पित कर दें|  इस व्रत में साफ सफाई का खास ध्यान रखना पड़ता है और इस शुभ दिन पर घरेलू सामान और झाड़ू खरीदने का विशेष महत्व है|

दशा माता की पौराणिक कथा

 

एक राजा था जिसका नाम नल था और उनकी रानी का नाम दमयंती था। वह बड़े प्रेम से राज्य करता था। एक दिन एक ब्राह्मणी पानी आपके पास आई। उस ब्रह्माणी रानी के पास आई। उसने गले में पीला डोरा बांधा था। रानी ने डोरा देखकर उससे डोरे के बारे में पूछा तो वह बोली- डोरा दशा माता का है पहनने से सुख संपत्ति, अन्न-धन घर में आता है। उसने रानी को भी एक डोरा दे दिया।

रानी के गले में डोरा बंधा देख राजा नल ने उसके बारे में पूछा। रानी ने सारी बात बता दी। राजा बोले- ‘तुम्हें किस चीज की कमी है? इस डोरे को तोड़कर फेंक दो।’ रानी ने देवी का आशीर्वाद कहकर उसे तोड़ने से मना कर दिया। पर राजा ने डोरा तोड़कर फेंक दिया। रानी बोली- ‘राजन्! यह आपने ठीक नहीं किया।’इसके बाद उस रात राजा के स्वप्न में दो स्त्रियां आईं। उन दोनों में से एक स्त्री बोली- ‘राजा! मैं यहां से जा रही हूं।’ दूसरी स्त्री बोली- ‘राजा मैं तेरे घर आ रही हूं।’ राजा को लगातार यह सपना 10 से 12 दिनों तक आया। रोजाना ऐसा सपने आने से राजा उदास रहने लगा। रानी ने उदासी का कारण पूछा तो राजा ने स्वप्न की बात बता दी। रानी ने राजा से उन दोनों स्त्रियों का नाम पूछने को कहा। तब राजा ने उनसे उनके नाम पूछे तो जाने वाली स्त्री ने अपना नाम ‘लक्ष्मी’ तथा आने वाली स्त्री ने ‘दरिद्रता’ बताया।

लक्ष्मी के जाते ही सब सोना-चांदी मिट्टी हो गया। रानी सहायता के लिए अपनी सखियों के पास गई। लेकिन, रानी का बुरा हाल देखकर कोई भी उनसे नहीं बोला। दुखी मन से राजा-रानी पांच बरस के राजकुंवर के साथ जंगल में कंदमूल खाकर अपने दिन बिताने लगे। चलते-चलते राजकुंवर को भूख लगी तो रानी ने कहा- ‘यहां पास ही एक मालन रहती है। जो मुझे फूलों की माला देकर जाती थी। उससे थोड़ा छाछ-दही मांग लाओ।’ राजा मालन के घर गया। वह दही बिलो रही थी। राजा के मांगने पर उसने कहा- ‘हमारे पास तो छाछ-दही कुछ भी नहीं है।’राजा खाली हाथ लौट आया। आगे चलने पर एक सांप ने कुंवर को डस लिया और राजकुमार की मृत्यु हो गई। विलाप करती रानी को राजा ने धैर्य बंधाया। इसके बाद वह दोनों आगे चले। राजा दो तीतर मार लाया। भूने हुए तीतर भी उड़ गए। उधर राजा स्नान कर धोती सुखा रहा था कि धोती उड़ गई। रानी ने अपनी धोती फाड़कर राजा को दी। वे भूखे-प्यासे ही आगे चल दिए। कुछ आगे चलकर राजा के दोस्त का घर आया। वहां जाकर उसने मित्र को अपने आने की सूचना दी। मित्र ने दोनों को एक कमरे में ठहरवाया। वहां मित्र ने लोहे के औजार आदि रखे हुए थे।

दैवयोग से वे सारे औजार धरती में समा गए। चोरी का दोष लगने के कारण वे दोनों रातो-रात वहां से भाग गए। आगे चलकर राजा की बहन का घर आया। बहन ने अपने एक पुराने महल में राजा और रानी के रहने की व्यवस्था की। सोने के थाल में उन्हें भोजन भेजा, पर थाली मिट्टी में बदल गई। राजा बड़ा लज्जित हुआ। थाल को वहीं गाड़कर दोनों फिर चल पड़े। आगे चलकर एक साहूकार का घर आया। वह साहूकार राजा के राज्य में व्यापार करने के लिए जाता था। साहूकार ने भी राजा को ठहरने के लिए पुरानी हवेली में सारी व्यवस्था कर दी। पुरानी हवेली में साहूकार की लड़की का हीरों का हार लटका हुआ था। पास ही दीवार पर एक मोर अंकित था। वह मोर ही हार निगलने लगा। यह देखकर राजा-रानी वहां से भी चले गए।इसपर रानी बोलती है कि ‘किसी के घर जाने के बजाए जंगल में लकड़ी काट-बेचकर ही हम अपना पेट भर लेंगे।’ रानी की बात से राजा सहमत हुआ। दोनों एक सूखे बगीचे में पहुंचे। उन दोनों के वहां पहुंचे ही बगीचे हरा भरा हो गया। यह देखकर बाग का मालिक बहुत प्रसन्न हुआ। उसने देखा वहां एक स्त्री-पुरुष सो रहे थे। उन्हें जगाकर बाग के मालिक ने पूछा- ‘तुम कौन हो?’ राजा बोला- ‘मुसाफिर हैं। मजदूरी की खोज में इधर आए हैं। यदि तुम रखो तो यहीं हम मेहनत-मजदूरी करके पेट पाल लेंगे। इसके बाद बगीचे के मालिक ने उन्हें अपना यहां नौकरी पर रख लिया।

एक दिन बाग की मालकिन भी संपदा देवी की कथा सुन डोरा ले रही थी। रानी के पूछने पर उसने बताया कि यह संपदा देवी का डोरा है। रानी ने भी कथा सुनी। डोरा लिया। राजा ने फिर पत्नी से पूछा कि यह डोरा कैसा बांधा है? तो रानी बोली- ‘यह वही डोरा है जिसे आपने एक बार तोड़कर फेंक दिया था और इसका अपमान किया था। उसी के कारण संपदा देवी हम पर नाराज हैं। ‘रानी फिर बोली- ‘यदि संपदा मां सच्ची हैं तो फिर हमारे पहले के दिन लौट आएंगे।’

उसी रात राजा को पहले की तरह स्वप्न आया। एक स्त्री कह रही है- ‘मैं जा रही हूं।’ दूसरी कह रही है- ‘राजा! मैं वापस आ रही हूं।’ राजा ने दोनों के नाम पूछे तो आने वाली ने अपना नाम ‘लक्ष्मी’ और जाने वाली ने ‘दरिद्रता’ बताया। राजा ने लक्ष्मी से पूछा अब जाओगी तो नहीं? लक्ष्मी बोली- यदि तुम्हारी पत्नी संपदाजी का डोरा लेकर कथा सुनती रहेगी तो मैं नहीं जाऊंगी।

यदि तुम डोरा तोड़ दोगे तो मैं वापस चली जाऊंगी। बाग की मालकिन जब वहां की रानी को हार देने जाती तो दमयंती हार गूंथकर देती। हार देखकर रानी बड़ी प्रसन्न हुई। उसने पूछा कि हार किसने बनाया है तो मालन ने कहा- ‘कोई पति-पत्नी बाग में मजदूरी करते हैं। उन्होंने ही बनाया है।’ रानी ने मालन को दोनों परदेसियों के नाम पूछने को कहा। उन्होंने अपना नाम नल-दमयंती बता दिया। मालन दोनों से क्षमायाचना करने लगी। राजा ने उससे कहा- ‘इसमें तुम्हारा क्या दोष है। हमारे दिन ही खराब थे।’अब दोनों अपने राजमहलों की तरफ चले। राह में साहूकार का घर आया। दोनों वहां साहूकार के पास गए। साहूकार ने नई हवेली में उनके ठहरने का प्रबंध किया तो राजा बोला- ‘मैं तो पुरानी हवेली में ही ठहरूंगा।’ वहां साहूकार ने देखा दीवार पर चित्रित मोर नौलखे हार उगल रहा था। साहूकार ने राजा के पैर पकड़ लिए। राजा ने कहा- ‘दोष तुम्हारा नहीं। मेरे दिन ही बुरे थे।’

राजा आगे चलकर बहन के घर पहुंचा। बहन ने नए महल में ही रहने की जिद की। जैसे ही उसके पैरों के नीचे की धरती खोदी तो हीरो से जड़ित थाल वहां से निकल आया। राजा ने बहन को वह थाल भेंट स्वरूप दिया। राजा आगे चल मित्र के घर पहुंचे तो उसने नए मकान में ठहरने की व्यवस्था की, पर राजा पुराने कमरे में ही ठहरा। वहीं मित्र के लोहे के औजार मिल गए। आगे चले तो नदी किनारे जहां राजा की धोती उड़ गई थी वह एक वृक्ष से लटकी हुई थी। वहां नहा-धोकर धोती पहने राजा आगे चला तो देखा कि कुंवर खेल रहा है।

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Sheemon Nigam

Chief Editor csnn24.com Artist by Passion, Journalist by Profession. MD of Devanshe Enterprises, Video Editor of Youtube Channel @buaa_ka_kitchen and Founder of @the.saviour.swarm. Freelance Zoophilist, Naturalist & Social Worker, Podcastor and Blogger. Experience as Anchor, Content creator and Editor in Media Industry. Member of AWBI & PFA India.

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