प्राचीन माँ गढ़ कालिका की चमत्कारी प्रतिमा है रतलाम में
रतलाम में लगता है 300 साल पुराना कालिका माता मेला
(www.csnn24.com) रतलाम शारदीय नवरात्रि शुरू होते ही देशभर के देवी मंदिरों में नौ दिनों तक विशेष पूजा-अर्चना शुरू होने वाली है। वहीं, रतलाम जिले के वर्षों पुराने प्रसिद्ध कालिका माता मंदिर में भी भक्तों का तांता लगा हुआ है| यहां स्थित मां कालिका की महिमा बहुत अनोखी है। मां कालिका हर मनोकामना पूर्ण करती हैं। नवरात्रि के साथ-साथ पूरे साल मंदिर में देवी मां के दर्शन और भक्ति के लिए भक्तों की भारी भीड़ लगी रहती है। इस मंदिर का इतिहास बेहद दिलचस्प है\ आइए जानते हैं इस मंदिर के इतिहास और महत्व के बारे में।
पुराना और सुनहरा इतिहास
प्राचीन माँ गढ़ कालिका की चमत्कारी प्रतिमा रतलाम में है। गर्भगृह में मां कालिका के साथ चामुंडा और दक्षिणावर्ती सूंड वाले गणपति विराजमान हैं। मंदिर के दरवाजे चांदी से बने हैं। भक्त कालिका माता मंदिर को जीवंत और पवित्र मानते हैं। 1556-1605 ई. में अकबर के समय में भी, रतलाम इसी नाम से था। आइना अकबरी के अनुसार, उस समय लगभग 500 की आबादी वाले रतलाम पर सोढ़ी राजपूत परिवार का शासन था। सोढ़ी परिवार ने माता की पूजा के लिए कालिका देवी की स्थापना की थी। तब से लेकर अब तक देवी मां की पूजा बड़े पैमाने पर की जाती रही है|
इस मंदिर का निर्माण रतलाम के राजा ने करवाया था
दरअसल, मंदिर में मां कालिका माता की मूर्ति प्राचीन है। लेकिन इस मंदिर का निर्माण रतलाम के राजा ने करवाया था, मंदिर के बगल वाले तालाब का नाम भी झाली तालाब था क्योंकि इसे रानी झाली ने बनवाया था। शहर के मध्य में स्थित होने के कारण यहां पूरे वर्ष भक्तों का तांता लगा रहता है।
मां कालिका के तीन रूपों की पूजा की जाती है
मंदिर में मां कालिका प्रतिदिन भक्तों को तीन रूपों में दर्शन देती हैं। भक्तों का मानना है कि मां कालिका माता सुबह के समय शिशु रूप में नजर आती हैं। दोपहर में मां अपने यौवन स्वरूप में भक्तों को दर्शन देती हैं। इसलिए शाम के समय मां कालिका अपने सभी भक्तों को बुढ़ापे का आशीर्वाद देती हैं और हर दिन दूर-दूर से भक्त यहां मां के इन चमत्कारी रूपों के दर्शन करने आते हैं और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए मां कालिका का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
गरबा पारंपरिक रूप से किया जाता है
यह मध्य प्रदेश का एकमात्र मंदिर है जहां सुबह 4 से 6 बजे तक गरबा कर मां कालिका माता की पूजा की जाती है। यहां होने वाले गरबा की सबसे खास बात यह है कि आज के आधुनिक युग में भी यहां कई आर्केस्ट्रा और डीजे होने के बावजूद पुराने पारंपरिक तरीके से ही गरबा किया जाता है। महिलाएं ढोल की थाप और शहनाई की धुन के साथ ही देवी मां के भजन गाती हैं, जबकि गरबा में आज भी महिलाएं सिर पर कलश में दीपक रखकर देवी मां की आराधना करती हैं।
नवरात्रि के दौरान यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है
नवरात्रि में मां कालिका के दर्शन के लिए सुबह 3 बजे से ही भक्तों की कतार लग जाती है, पूरे दिन भक्तों का तांता लगा रहता है, सुबह 3 बजे से ही भक्त नंगे पैर मां कालिका के दर्शन के लिए जाते देखे जा सकते हैं| नवरात्रि के इन नौ दिनों में मंदिर में सुबह दर्शन के लिए भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है।
यह मंदिर 400 साल पुराना है
मंदिर के पुजारी पंडित आकाश बताते हैं कि यह मंदिर करीब 400 साल पुराना है। रतलाम के राजा भी यहां दर्शन करने आते थे, मंदिर में मां कालिका माता की मूर्ति 3 रूपों में नजर आती है। देवी मां के दर्शन करने वाले सभी भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। भक्तों का कहना है कि यहां प्राचीन मंदिर के अलावा एक सिद्धपीठ भी है। इस मंदिर का निर्माण रतलाम राजा ने करवाया था। रानी झाली के नाम पर एक तालाब भी है। भक्तों ने बताया कि यह एकमात्र मंदिर है जहां सुबह पारंपरिक तरीके से गरबा का आयोजन किया जाता है. आज भी यहां सिर पर कलश में दीपक जलाकर गरबा किया जाता है। रतलाम में लगता है नवरात्रि में 300 साल पुराना कालिका माता का मेला जिसमे गरबा होता है और तरह तरह की दुकाने लगती है खाने पीने की दुकाने ओर घरेलू सामान के उपयोग की दुकाने प्रसिद्ध मेला अश्विनी शुक्ल की उजाली नवरात्रि में दशहरे के पहले लगता है जंहा हज़ारो लोग आते है |